।।उत्तिष्ठ भारत:।।

।।उत्तिष्ठ भारत:।।

मैं बचपन से यही सुनता, पढ़ता और समझता आ रहा हूँ कि दुनिया तरक़्क़ी कर रही है , जीवन आसान हो रहा है । सबका जीवन विज्ञान और तकनीक से सुखमय हो रहा है । अच्छा हो रहा है । आज जो चाहो सब मिल जाता है बाज़ार में । परंतु अनुभव के स्तर पे मुझे लगता है सुविधा भोगी जीवन तनाव में है चिंता में क्यूँ कि बिना धन के कुछ नहीं मिलता । मूलतः मनुष्य आता तो ख़ाली हाथ ही है … फिर मेहनत क़िस्मत, और समय के संयोग से धन आता है हाथ में । फिर हम करन्सी या मुद्रा की दौड़ में शामिल होते हैं । हवा को प्रदूषित करके, तालाब, नदियों और समंदर को प्रदूषित करके, धरती में ज़हर डाल कर, ecosystem यानी पर्यावरणीय व्यवस्था को असंतुलित कर, हम मुद्रा ही इकट्ठा कर रहे हैं । मुद्रा नहीं तो हम गरीब … मुद्रा का भंडार है तो अमीर । ये मूर्खता पूर्ण सम्पत्ति संग्रह का खेल मौलिक रूप से प्रकृति के विरुद्ध है । क्यूँ कि जाएँगे तो ख़ाली हाथ ही , यह अटल सत्य है । तो संग्रह क्यूँ? असुरक्षा का भय । हवा को प्रदूषित करके सिलेंडर से साँस लेने वाली, नदी को प्रदूषित करके बोतल में पानी पीने वाली, और धरती को प्रदूषित करके प्लास्टिक में पैक ज़हर युक्त भोजन खाने वाली ये पीढ़ी कब तक मुद्रा और बाज़ार की वैशाखियों पे चलती रहेगी । गाँव उजड़ रहे हैं, और ये कैन्सर की तरह धरती पे फैलते शहरों में समाज ख़त्म है । और अच्छे शहरों में परिवार ख़त्म हैं । घर में आँगन ख़त्म हैं । मिट्टी का स्पर्श ख़त्म और तारों से भरे आकाश की रात ख़त्म । कुछ बढ़ी है तो बस economy / अर्थव्यवस्था और लोगों कि सम्पत्ति, और नष्ट हुयी है नैसर्गिक सम्पदा । बढ़ें है अस्पताल और गिरा है नैसर्गिक स्वास्थ्य । बढ़ी है information/ सूचना और घटा है विवेक । ये सब बाज़ार का ही तो खेल है ! बाज़ार में बैठे है शिकारी तुम्हारी प्रतीक्षा में… बाज़ार का खेल अद्भुत है कि :
*बहुत बेदर्द हैं इस इस शहर के इंसाँ *।
ज़ख़्म खा कर भी ज़ख्मों की क़ीमत लगाते हैं।।
तो आओ सुविधा की बजाय आनंद की ओर चलें …
सम्पत्ति की बजाय सम्पदा की ओर चलें …
बाज़ार मुक्त समाज की ओर चलें…
**भले ही दो कदम चलें… पर चलें ज़रूर *।
समाधान हैं :
१) शिक्षा में चरित्र निर्माण की प्राथमिकता – जो नशेड़ी चरित्र के स्थान पर संतुलित संयमित और संकल्पित पीढ़ी का निर्माण करेंगे … वही पीढ़ी बचाएगी पेड़ों को , गंगा को, गाय को, मिट्टी को …
२) स्वयथ्य का मध्यम मार्ग यानी श्रम आधारित जैविक जीवन शैली – जब मनुष्य , मस्तिष्क की नहीं बल्कि अपने शारीरिक श्रम से कमायी रोटी खाएगा – अपना भोजन ख़ुद उगाएगा , तो मिलेगा उसे सच्चा स्वास्थ्य और सुख ।
३) चक्रीय अर्थव्यवस्था – economy through ecology .
जब जागो तभी सबेरा ।
।।उत्तिष्ठ भारत:।।
सप्रेम
रविकान्त पाठक एवं समस्त भारत उदय परिवार ।
।। जय हिंद ।।🇮🇳

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